हिंदी और अंग्रेजी पारस्परिक व्यवसायिक हितों के चलते एक दूसरे को बढ़ा रही हैं। जबकि हिंदी और उर्दू की आपसदारी भावात्मक है।वह दिन दूर नहीं जब आधे से अधिक सोवियत यूनियन के देश भी भारतीय उपमहाद्वीप के भाषायी प्रभाव के दायरे में होंगे।

किसी भी भाषा मे शब्द जोड़े नहीं जाते , स्वतः जुड़ते हैं।यह भाषा की जीवन्तता और जिजीविषा पर निर्भर है।

 जीवन्तता नहीं होने पर विकसित बोलियाँ भी लुप्तप्राय हो गईं।

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