हम कहाँ ऐसे खुशनसीबों में।
जिनको गिनता है तू करीबों में।।
जो रक़ाबत हमारी करते हैं
हैफ वो हैं तेरे हबीबों में।।
तेरी ख़ातिर महल बना देते
हम न होते अगर गरीबों में।।
हममें खुद्दारी है सनम वरना
अपनी कीमत भी है दरीबों में।।
दौरे हाज़िर में हक़ पसन्दों को
लोग गिनते हैं कुछ अजीबो में।।
जानना है मेरी सदाकत तो
बैठ जाकर मेरे रक़ीबों में।।
वक्त रहते सम्हल गए वरना
हम भी दिखते तुम्हे सलीबों में ।।
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