मत कुरेदो राख के नीचे दबे अंगार को
मत उभारो भावनाओं के दबे उद्गार को
क्या करोगे चूमकर अब मृत्यु सी ठंडी जवानी
बिन सहारे जब बिता डाली ये सारी ज़िंदगानी
तप सरीखी काट दी जिसके विरह में ज़िन्दगी
मत मनाओ फिर उसी से काम मय अभिसार को।।
फिर बसन्ती दिन सुनहरे लौट कर आने है
ख़्वाब बिखरे टूट कर जो फिर सिमट पाने नहीं हैं
तोड़ डाले थे कभी जिसने तेरे सपने सुनहरे
मत सजाओ उस छली संग स्वप्न के संसार को ......
सुरेशसाहनी
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