चढ़ा है आप का सूरज तो कल ढलेगा भी

यहाँ तो जिस्म भी फ़ानी हैं कल रहे न रहे।

इसी अना में तो पन्जे का टूटना तय था

इसी गुरुर में खिलते कमल रहे न रहे।।

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है