गाँव के बहुत पेड़ अब नहीं है
मुहब्बत की जड़ें भी मर चुकी हैं
यहाँ था गांव का बरगद पुराना
तरक्की की हवा से गिर गया वो
यहीं इसके तले चौपाल भी थी
जहाँ वीरानियाँ दम तोड़ती थीं
वहां खामोशियों की आड़ लेकर
विधायक जी ने कब्जा कर लिया है
हाँ उनके भी अब कुछ दिन बचे हैं
वहां बैठक है बड़के चौधरी की
बुलेरो है ,कई डम्फर खड़े हैं
वो बड़का घर तो कब का गिर चुका है
पलानी छा के सारे रह रहे हैं
अब साहू जी प्रधान हो गए हैं
शंकर फिर खेत रख दिया है
मनरेगा में काम मिल गया है
चार आना परधान जी लेते हैं
इमनदारी से पैसा दे देते हैं
अरे अब गांव बहुत बढ़ गया है
दारू की दुकान भी खुल गयी है।।
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