जब हमारे ही हम से टूट गए।

हम से मजबूत ग़म से टूट गए।।


मयकदे के वजू का देख असर

रिश्ते दैरो- हरम से टूट गए।।


उसका महफ़िल में यूँ अयाँ होना

दीन वाले धरम से टूट गए।।


फिर तो लज़्ज़त रही न रोज़े की

जो सुराही के खम से टूट गए।।


इतने नाज़ुक नहीं है हम यारब

जो गिरे और धम से टूट गए।।


तेरी आँखों को देखकर साक़ी

हम हमारी कसम से टूट गए।।


आशिक़ी के बहर में उतरे क्यों

तुम अगर ज़ेरोबम से टूट गए।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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