साहित्यिक विमर्श समीक्षा से समालोचना समालोचना से आलोचना ,आलोचना से कटाक्ष, कटाक्ष से निन्दा और निन्दा से गाली गलौज तक एक लंबी यात्रा कर चुका है।और ऐसा नहीं कि अब से पहले ऐसा नहीं होता रहा है।लेकिन फूहड़ता के जिस उच्चतम स्तर को आज हम स्पर्श कर रहे हैं इसकी कल्पना भी पूर्व के साहित्यकारों ने नही करी होगी। 

 खैर मैं तो सतही कलमकार ठहरा।फेसबुक के जरिये ही साहित्यिक गतिविधियों और चर्चाओं से दो चार हो पाता हूँ।सर्वाधिक जानकारी अनिल जनविजय की पोस्ट्स से प्राप्त होती है। शेष नाम मैं इसलिए नहीं लिखूंगा कि मेरे ऊपर भी किसी ग्रुप अथवा गिरोह से जुड़े होने का आरोप न लगने पाये। दूसरी बात जिसका नाम लिखा वह भले ध्यान न दे लेकिन जिनके नाम नहीं लिखे वे जरूर लाल पीला हो जाएंगे। आजकल डॉ नामवर सिंह फिर से चर्चा में हैं। ये चर्चाएं भी लाल पीली ही हैं। आज फिर Vijay Gaur ने देहरादून में हुए कविक्रम :साहित्यिक विमर्श से सम्बंधित पोस्ट डाली तब मेरी भी लिखास जाग गयी। मैं तमाम ऐसे साहित्यकारों को देखता सुनता आया हूँ जो त्रिकालज्ञ रहे हैं।केंद्रीय परिक्रमाओं में रत देशकालगति  मर्मज्ञ ये साहित्यकार गण आयोजकों के अनुरूप अपने परिधान भी तैयार रखते हैं।बहूत सारे कामरेड लेखक समय के साथ चलते हुए स्वयं को भगवा रंग में रंग चुके हैं।

तो अब साहित्य में भी निरपेक्षता गए जमाने की बात हो चुकी है।

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