सचमुच अज़ीब सी लगती हैं

माँ की महिमा पर लिखी गईं

कवितायें ,चेंपे गये पोस्ट

बस अपनी माँ बस अपनी माँ 

बेशक़ माँ अच्छी होती है

पर  और दूसरी मातायें  

क्या वे श्रद्धा की मूर्ति नहीं 


यदि युवा दिखें तो और भाव

बस बूढ़ी हों तो बेहतर हैं

सम्मान अगर कुछ देना था

तो हर उस नारी को देते

जो किसी पुरुष को देती है

हक़ बनें पिता भाई बेटे

नन्ही बच्ची में माँ देखो

माँ में इक बेटी दर्श करो

फिर मन मे श्रद्धा भाव लिये

नत शीश चरण स्पर्श करो.........


यदि सृष्टि तुम्हें दे देती है

कुछ क्षण शिव होने का गौरव

इस पर अभिमानित होकर तुम

क्यों सत्य विमुख हो जाते हो

यह जगजननी का होना ही

तुमको शिव होने देता है

उस क्षण तुम परमपिता तो हो

फिर रह जाते हो जीव मात्र

जैसे एक जीव गर्भ में हो.....


या और अधिक कटु सत्य लिखूं

इक आईवीएफ इंजेक्शन से

कुछ अधिक पुरुष अस्तित्व नहीं

पर माँ बनना या माँ होना

जग को नवजीवन देना है

उतना ही शाश्वत है जितना

धरती का धरती होना है।।......


#सुरेशसाहनी,कानपुर

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