क्यों इतना लिखते पढ़ते हो।

सबकी नज़रों में गड़ते हो।।

दुनिया पीछे भाग रही है

तुम नाहक़ आगे बढ़ते हो।।

क्या मिलता है सत्य बोलकर

 आखिर क्यों सूली चढ़ते हो।।

सबका हक़ छीना है उसने

तुम ही क्यों इसपर लड़ते हो।।

झूठ के पैर नहीं होते हैं

क्यों उसके पीछे पड़ते हो।।

दुनिया उससे भी ऊपर है

तुम जितना ऊँचा उड़ते हो।।

सुरेश साहनी,कानपुर

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