मेरे दुश्मन से मेरा दिल मिला है।
मुझे कितना हसी कातिल मिला है।।
कभी गिरदाब ने थामी है बाहें
कभी मझधार में साहिल मिला है।।
जो पर्दे की वकालत कर रहा था
उरीयां वो सरे महफिल मिला है।।
मुहब्बत क्या है कुछ हासिल न होना
यही तो इश्क का हासिल मिला है।।
जिबह करता है ये कितने सुकूं से
बड़ी मुश्किल से इक कामिल मिला है।।
सुरेश साहनी कानपुर
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