मुझको बेशक उठा हुआ न समझ।
मत समझ पर गिरा हुआ न समझ।।
तू भले मेरा मर्तबा न समझ।
पर किसी गैर को खुदा न समझ।।
जब भी दोगे सदा मैं आऊंगा
मुझको हरगिज़ गया हुआ न समझ।।
तू जो हर इक अदा पे मरता है
ये तड़प है इसे अदा न समझ।।
कब रकाबत मसीह ने की है
इन रकीबों को देवता न समझ।।
इश्क का हर इलाज इश्क में है
जो जहर है उसे दवा न समझ।।
सबसे कहता फिरे है अब नासेह
साहनी को भी पारसा न समझ।।
सुरेश साहनी कानपुर
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