ग़मगुसारी का दौर है शायद।
आहो-ज़ारी का दौर है शायद।।
अव किसी को कहीं क़रार नहीं
बेक़रारी का दौर है शायद।।
मौत भी जैसे आज है सफ में
इन्तज़ारी का दौर है शायद।।
ज़िन्दगी कह रही है जाने वफ़ा
ख़ुद से यारी का दौर है शायद।।
हर कदम पर है कर्बला गोया
जांनिसारी का दौर है शायद।।
नोटबन्दी से लॉकडाउन तक
जानमारी का दौर है शायद।।
टैक्स की लूट और महंगाई
सेंधमारी का दौर है शायद।।
सुरेश साहनी, कानपुर
Comments
Post a Comment