इस जवानी पे कुछ रहम कर दे।
दूरियां बेहिसाब कम कर दे।।
दिल हमें दे ना दे तेरी मर्जी
एक मेरे दिल पे कुछ सितम कर दे।।
तुझको फरियाद भी कुबूल नहीं
तो ज़ुबाँ ही मेरी क़लम कर दे।।
तू कोई हुस्न की सुराही है
तो मेरे वास्ते भी ख़म कर दे।।
मान जाऊंगा तू समंदर है
गर मेरी तिश्नगी ख़तम कर दे।।
जानता हूँ के झूठ है फिर भी
तू यही कह के खुशफ़हम कर दे।।
कह दे ऐलानिया मुहब्बत है
दिल के बाज़ार को गरम कर दे।।
सुरेश साहनी अदीब
कानपुर
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