दिन गया रात गयी।

हर गयी  बात गयी।।

हम सियासी जो हुए

सारी औकात गयी।।

चन्द रूपये भी गए

और मुलाकात गयी।।

उसकी अस्मत भी लुटी

और हवालात गयी।।

खेत सूखे ही रहे

पूरी बरसात गयी।।

धन यहीं छूट गया

नेकियाँ साथ गयी।।

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