आज कुछ खो गया सा लगता है।

मन बहुत अनमना सा लगता है।।

चाल बदली सी है हवाओं की

वक़्त भी बेवफ़ा सा लगता है।।

हमने जां भी नवाज़ दी जिस पे

ये उसे इक ज़रा सा लगता है।।

जाने क्या क्या सिखा दिया उसने

मेरा कातिल पढ़ा सा लगता है।।

उसकी यादें चुभे हैं खंज़र सी

ज़ख्म फिर फिर हरा सा लगता है।।

उसकी बातों में पारसाई है

उसका मिलना दुआ सा लगता है।।

आजकल वो इधर नहीं आता

हो न हो कुछ ख़फ़ा सा लगता है।।

सुरेश साहनी

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