जातिधर्म में बंट गया हर आभासी मंच।

सद आशय की आड़ में करते लोग प्रपंच।।


अब जनता की ना रही पांच रुपए की ब्योत।

बिन इलाज के क्यों न हो उम्मीदों की मौत।।साहनी

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