दिन में सूरज ने तपाया अक्सर।
रात चंदा ने सताया अक्सर।।
जब कभी ग़म के अंधेरे छाए
दीप यादों ने जलाया अक्सर।।
अब वफ़ा बात है बीते कल की
ये ज़माने ने बताया अक्सर।।
आसरे दिन से कहाँ मिल पाए
सर तो रातों ने छुपाया अक्सर।।
जब कभी नींद की आगोश मिली
ख़ुद को फुटपाथ पे पाया अक्सर।।
तुमसे उम्मीद कोई क्या रखते
छोड जब जाता है साया अक्सर।।
अब मुसाफिर के बने रहने को
जिस्म देता है किराया अक्सर।।
सुरेश साहनी, कानपुर
9451545132
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