घर के बाहर घर के बरगद रोप दिए।
जिन ने हमको घर आंगन सब सौंप दिए।।
हमें गांव का घर बेमानी लगता था
हमने उस पर गैरों के घर थोप दिए।।
बूढ़ी सांसें अक्सर खाँसा करती थी
हमने उन आसों में खंजर घोंप दिए।।
वे कब्रें जो राह निहारा करती हैं
उन आंखों पर हमने धोखे तोप दिए।।
अम्मा बाबू पुरखे और पुरनियों को
हमने अनजाने में कितने कोप दिए।।
जो अपनी जड़ थे प्रकाश थे पानी थे
उनको हम पर लदने के आरोप दिए।।
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