मुस्कुराई है ज़िन्दगी फिर से।
लौट आयी है ज़िन्दगी फिर से।।
मुद्दतों बाद ज़िन्दगी क्या है
जान पायी है ज़िन्दगी फिर से।।
मौत भी आज हार मान गयी
जब लुटाई है ज़िन्दगी फिर से।।
ग़ैर भी वाह वाह बोल उठा
यूँ गंवाई है ज़िन्दगी फिर से।।
आरजूओं ने कुछ कहा होगा
कसमसाई है ज़िन्दगी फिर से।।
ख़र्च ख़ुद को किया है तब जाकर
कुछ कमाई है ज़िन्दगी फिर से।।
गुनगुनी धूप प्यार की पाकर
कुनमुनाई है ज़िन्दगी फिर से।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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