आँख में फिर वही नमी क्यों है।

आज बेचैन आदमी क्यों है ।।


ज़श्न होते हैं एहतियात लिए

आज खतरे में हर ख़ुशी क्यों है।।


हर तरफ ज़िन्दगी मनाज़िर है

फिर हवाओं में सनसनी क्यों है।।


ऐ शहर तुझसे आशना हूँ मैं 

पर तेरे लोग अज़नबी क्यों है।।


कल तलक मैं तेरी ज़रूरत था

यकबयक इतनी बेरुखी क्यों है।।


तेरी आँखे तो खुद समंदर हैं

तेरी आँखों में तिश्नगी क्यों है।।


मौत खुद चल के पास आएगी

ज़ीस्त तू तेज भागती क्यों है।।


हर  तरफ़  हैं    हसीन नज़्ज़ारे

मेरी आँखों में इक तू ही  क्यों है।।

सुरेश साहनी

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है