बहुत बतंगड़ बड़ी बतकही।
अब भी कोई बात बच रही।।
दूध दही की नदी बहुत थी
आज कहाँ है दूध और दही।।
रामायण सब पढ़े सुने हैं
कितनों ने अच्छाईयाँ गही।।
कहा सुना कम उतरा दिल में
किन्तु उन्हें खल गयी अनकही।।
रहने पर था पड़े हुए हैं
नहीं रहे तो मनी तेरही।।
बीत गया अब करो विवेचन
कौन गलत है कौन है सही।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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