आप सचमुच अगर जुबाँ रखते।
सच के कदमों तले ज़हाँ रखते।।
कुछ इरादों के कारवाँ रखते।
कुछ दुआओं के सायबाँ रखते।।
आप तो आप ही नहीं वरना
यूँ न किरदार की दुकाँ रखते।।
आप होते तो हक़ को हक़ मिलता
बातिलों को धुआँ धुआँ रखते।।
इस क़दर नफरती ज़हन उस पर
तंगदिल थे हमें कहाँ रखते।।
सुरेश साहनी कानपुर
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