कोई पागल क्यों डरेगा।
जो मरेगा सो मरेगा ।।
मन हरा है अंग धानी
ख़्वाब पूरे आसमानी
प्यार की ऐसी कहानी
एक पागल ही लिखेगा।।
सूर्य जैसी लालिमा दे
रात शीतल चंद्रमा दे
हर दशा में मन रमा दे
कोई पागल ही मिलेगा।।
ध्यान स्थिर चाल चंचल
देह बेसुध मन में हलचल
फर्क क्या कल आज या कल
क्यों डरेगा क्या मरेगा।।
तुम डरो घर टूटता है
धन लुटेरा लूटता है
सन्त का क्या छूटता है
वो किधर भी चल पड़ेगा।।
मृत्यु भी जीवन सफर है
वीरता मरकर अमर है
मृत्यु का कारण ही डर है
जो डरेगा सो मरेगा।।
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