परिवर्तन स्वीकार करो अब
नवपथ अंगीकार करो अब।
कर अतीत स्मृति में संचित
वर्तमान से प्यार करो अब।।
युग व्यतिक्रमित हो गए जब की
पथ दिग्भ्रमित हो गए जब की
इस संक्रान्ति काल में शुचियुत
स्नेह संक्रमित हो गए जबकि
प्रतिरोधी उपचार करो अब।।
नवपथ अंगीकार करो अब।।
मानव से मानव की दूरी
मात्र स्वार्थ रह गए जरूरी
किन्तु भूल जाता है मानव
निजता है अस्मिता अधूरी
भौमिकता स्वीकार करो अब।।
नवपथ अंगीकार करो अब।।
सूरज ढला रात होती है
बीती रात सुबह आती है
वक्ष चीर कर गहन तिमिर का
उषा लालिमा कर जाती है
आशा का संचार करो अब।।
नवपथ अंगीकार करो अब।।
सुरेशसाहनी, कानपुर
Comments
Post a Comment