चलो हम तुम कहीं चलकर तलाशें।

मेरे इंसां  के लायक   घर तलाशें।।


चलो अब छोड़कर नफ़रत के डेरे

मुहब्बत वाले  दैर-ओ-दर  तलाशें।।


ये मुमकिन है जो हम पर हँस रहे हैं

वो इकदिन हमको रो रोकर तलाशें।।


कोई तुममें है तुमसे ख़ूबसूरत

इज़ाज़त दो तो हम छूकर तलाशें।।


ये दौलत अपने भीतर ही छुपी है

सुक़ूने-दिल  कहाँ जाकर तलाशें।।


जफ़ाओं में भी कुछ तो नरमियत हो

उन्हें कह दो नया खंज़र तलाशें।।


न जाने ताज़ में कितने दफन हैं

कहाँ तक नाम के पत्थर तलाशें।।


सुरेशसाहनी, कानपुर

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