हम भी ख़ुद को कहाँ कहाँ ढूंढ़ें।
राख खोजें कि हम धुआँ ढूंढें।।
धूल उड़ कर जमीं पे आनी है
हम किसे जाके आसमाँ ढूंढ़ें।।
ग़र ख़ुदा हैं कहीं तो हम में है
उसको अपने ही दरमियाँ ढूंढ़ें।।
आशना कौन था यहाँ हमसे
किसको जाकर यहाँ वहाँ ढूंढ़ें।।
जब कि तन्हा सफ़र मुनक़्क़िद है
क्या पड़ी है कि कारवाँ ढूंढ़ें।।
जिस्म का जब मकान था तो था
अब कहाँ जाके आशियाँ ढूंढ़ें।।
अब न आएंगे साहनी मिलने
उनको बेशक़ फलां फलां ढूंढ़ें।।
सुरेश साहनी, अदीब
कानपुर
9451545132
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