वो फिर से याद आना चाहता है।
न जाने क्यों सताना चाहता है।।
नई तर्ज़े-ज़फ़ा ढूंढ़ी है शायद
जो हमपे आज़माना चाहता है।।
हमारे ख़्वाब कल तोड़े थे जिसने
वही ख़्वाबों में आना चाहता है।।
सरे-शहरे-ख़मोशा रो रहा है
कोई किसको जगाना चाहता है ।।
यहां दिल भी नहीं है पास अपने
तो फिर क्यों दिल लगाना चाहता है।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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