इश्क़ को जिस्म की ज़रूरत क्या।

हुस्न इतना है खूबसूरत क्या।।


रूह का हुस्न है क़यामत तक

जिस्म रहता है ताक़यामत क्या।।


वस्ले रूहों में जो मसर्रत है

जिस्म देता है वो मसर्रत क्या।।


पहले हिर्स-ओ-हवस किनारे रख

तब तो जानेगा है मुहब्बत क्या।।


उम्र भर रूठता रहा मुझसे

काश कहता कि थी शिकायत क्या।।


चार दिन ज़िन्दगी तो दी उसने

और करता कोई मुरौवत क्या।।


आदमी को न आदमी समझूँ

मुझमें आएगी ये महारत क्या।।


सुरेश साहनी, कानपुर

9451545132

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है