हमारे गांवों में आज भी स्त्रियाँ पति का नाम नही लेती हैं । बचपन में किसी अख़बार शायद दैनिक आज में एक प्रसंग पढ़ा था । उस प्रसंग में एक देहाती स्त्री राशन की दुकान पर अपना राशन कार्ड लेने गयी थी । राशन दुकानदार ने कार्डधारक का नाम पूछा । स्त्री शरमा कर बोली ,'वही मा लिखा है । दूकानदार ने उसकी परेशानी समझते हुए उसके पति के नाम का संकेत बताने को कहा । उस स्त्री ने कहा उनके नाम का महीना होत है । दुकानदार ने फागु ,चैतू आदि नाम लिए किन्तु स्त्री ने निराशा से भरी असहमति जताई । पुनः उस स्त्री ने कहा की उनके नाम मा पानी बरसत है । दुकानदार ने तुरन्त पूछा 'कहीं भदई तो नही ?स्त्री ख़ुशी से चिल्ला उठी --हाँ हाँ !भदई!भदई !!! आईये भादो या भाद्रपद का स्वागत करते हैं ।
भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील
अमवा के बारी में बोले रे कोयिलिया ,आ बनवा में नाचेला मोर| पापी पपिहरा रे पियवा पुकारे,पियवा गईले कवने ओर निरमोहिया रे, छलकल गगरिया मोर निरमोहिया रे, छलकल गगरिया मोर||........... छलकल .... सुगवा के ठोरवा के सुगनी निहारे,सुगवा सुगिनिया के ठोर, बिरही चकोरवा चंदनिया निहारे, चनवा गईले कवने ओर निरमोहिया रे, . छलकल .... नाचेला जे मोरवा ता मोरनी निहारे जोड़ीके सनेहिया के डोर, गरजे बदरवा ता लरजेला मनवा भीजी जाला अंखिया के कोर निरमोहिया रे, . छलकल .... घरवा में खोजलीं,दलनवा में खोजलीं ,खोजलीं सिवनवा के ओर , खेत-खरिहनवा रे कुल्ही खोज भयिलीं, पियवा गईले कवने ओर निरमोहिया रे, छलकल ....
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