जब भी उनकी बात चली है।
जाने कैसे रात कटी है।।
ख़्वाब मुनव्वर हैं या कोई
तारों की बारात सजी है।।
उन आंखों में ऐसा क्या है
महफ़िल सारी रात जगी है।।
परवानों पर क्यों है बंदिश
शम्मा मद्धिम मद्धिम सी है।।
अच्छा अब हम नींद ओढ़ लें
वो ख़्वाबों में आ सकती है।।
Suresh sahani, Kanpur
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