मत पूछो अलगाव कहाँ है।
रिश्तों में ठहराव कहाँ है।।
बेगानों की इस बस्ती में
अपनेपन का भाव कहाँ है।।
हर आँगन में दस दीवारें
पहले जैसा गाँव कहाँ है।।
जाने किसपे तुम माइल हो
सोचो अभी लगाव कहाँ है।।
दिल के रस्ते सीधे सादे
सच मे यहाँ घुमाव कहाँ है।।
बेशक़ तन से पास खड़े हो
दिल से मगर जुड़ाव कहाँ है।।
तुम तो कुश्ती के माहिर हो
दिल जीते वो दाँव कहाँ है।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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