गुल के जैसा खार था वो।
दूसरे का प्यार था वो ।।
आज जो अपना नहीं है
कल हमारा यार था वो।।
जल गया जिस फूल से मैं
क्या कोई अंगार था वो।।
था वो रुसवाई का पर्चा
या कोई अख़बार था वो।।
क्यों दवा ने मार डाला
आख़िरी बीमार था वो।।
छोड़ आया आज जिसको
क्या मेरा संसार था वो।।
फिर भी दिल से हैं दुवाएँ
कुछ हो आख़िर यार था वो।।
बेवफ़ा मजबूर था या
आदतन लाचार था वो।।
है रक़ाबत का तो रिश्ता
क्यों कहें अगयार था वो।।
सुरेश साहनी कानपुर
9451545132
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