इतना घना अँधेरा क्यों है।

बादल स्याह घनेरा क्यों है।।

क्यों हँसता है झूठ ठठाकर

सच को सबने घेरा क्यों है।।

रात समेटे ख़ुद को कैसे

इतनी दूर सवेरा क्यों हैं।।

 तहजीबें ग़ुम हैं हम वाली

ये मेरा और तेरा क्यों है।।

बच्चों की किलकारी गुम है

भय का आज बसेरा क्यों है।।

लोकतंत्र में कदम कदम पर

राजाओं का डेरा क्यों है।।

#सुरेशसाहनी

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