मैं अपने वक्त से कोई गिला शिकवा नहीं करता।

मगर मैं टूटते रिश्तों को भी बाँधा नही करता।।

मैं एक उम्मीद हरदम साथ लेकर के तो चलता हूँ

मगर झूठी बिना पर कोई भी दावा नही करता।।

जो खुद कुछ भी नही करते उन्ही को फ़िक्र ज्यादा है

कोई ऐसा नही करता  कोई वैसा नहीं करता।। 

ख़ुदा ने इस जहाँ में मोमिनो-काफ़िर बनाये हैं

बड़ी हैरत है क्यों दुनिया को वो यकसा नही करता।।

कोई काबे को जाता है कोई काशी को जाता है

कोई पूजा नहीं करता कोई सजदा नही करता।।

सुरेश साहनी

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