कभी कभी लीक से हटकर लिखने की इच्छा होती है

 कभी पुराने ढर्रे पर ही चलते रहना भला लगे है।।

कभी कभी उन्मुक्त गगन में उड़ने की कोशिश करता हूँ

और कभी उसकी बाहों में बंध कर रहना भला लगे है।।

इस उधेड़बुन में जीवन के  कितने नाते टूटे उधड़े

जाने कितनी आसें टूटी  जाने कितने सपने उजड़े

कभी कभी तुमसे भी छुपकर जीने की इच्छा होती है

और कभी तेरी बाहों में मर जाना भी भला लगे है।।

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