आपका किसी से प्रेंम रति है।प्रेम के प्रतिफल की अपेक्षा काम है।एक पिता का पुत्र से स्नेह रति है।पुत्र से बदले में सेवा की अपेक्षा काम है। यह मर्यादित हैं तो सृष्टि का कारक है। अमर्यादित है तो यही आत्मघाती हो जाता है।
मर्यादित स्वरूप मे काम और रति का समन्वय शिवत्व है।
#समन्वयवाद के सूत्र
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