सिर्फ़ उस दिन निज़ाम बदलेगा।

जब तू तौरे- कलाम बदलेगा।।

सिर्फ़ क़िरदार के बदलने से

क्या ये किस्सा तमाम बदलेगा।।

सूरते हाल तो बदल न सका

सिर्फ़ शहरों के नाम बदलेगा।।

नेमतें मिल रही है ख़ासों को

और कहता है आम बदलेगा।।

खेत खलिहान छीनकर यारों

वो किसानों के गाम बदलेगा।।

तंत्र मजदूर के किसानों के

छीनकर काम दाम बदलेगा।।

जब भी बदलेगा मुल्क की किस्मत

मुल्क का ही अवाम बदलेगा।।

हाल फिलहाल क्या कहें यारों

जो भी बदलेगा राम बदलेगा।।

सुरेश साहनी, कानपुर

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