कल फिर एक दिन निकल जायेगा
ऐसा होते होते
आधी सदी गुज़र चुकी है
ये वो दिन हैं
जिसके लिए माँ ने
नौ माह पीड़ा सही होगी
व्रत उपवास रखे होंगे
मन्नतें मानी होंगी
मंदिरों के चक्कर भी काटे होंगे
और एक दिन असीम पीड़ा के बाद
मुझे पाया होगा
भगवान भी पूरा सूद आना पाई
वसूलने के बाद ही पिघलता है
लेकिन वह अंतिम पीड़ा नहीं थी
पालना तो और भी कठिन है
इस का प्रतिफल
माँ को कब मिलता है
शायद कभी नहीं
मुझे पता है माँ की पीड़ा
कभी खत्म नहीं होती
माँ अपनी अंतिम स्वास तक
माँ ही रहती है
न ममता कम होती है न पीड़ा
हम नहीं पाल सके तुम्हें
हम नहीं सहेज सके तुम्हें
माँ मुझे नहीं पता
तुमने मुझे पाया
या तुमने मुझे दिया
आज तुम नहीं हो तो
अनुत्तरित है यह प्रश्न
माँ!अगली बार मुझे जन्मना
तो ज़रूर बताना....
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