चाहते हैं आप कवि सब सच लिखे
चाहते हैं आप कवि ही क्रांति लाये
चाहते हैं सब कलम कुछ आग उगले
चाहते हैं सब कलम सर भी कटाये
चाहते हैं आप फिर आज़ाद बिस्मिल
जन्म लें लेकिन किसी दूजे के घर मे
चाहते हैं आप का बेटा पढ़े और
नेक हो साहब बहादुर की नज़र में
सच बताना आप ने कब किस कलम की
अपने स्तर से मदद कोई करी है
दरअसल है सच कि सब ये सोचते हैं
खेल है कविता हँसी है मसखरी है
आप खुद क्यों मौन हैं अन्याय सहकर
जी रहे हैं अंतरात्मा का हनन कर
हर कलम बोलेगी सच बस शर्त ये है
आप सच का साथ दें घर से निकल कर
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