कीजिए स्वदेश प्रेम जन्म कुल संवारिए।

आज मातु भारती की आरती उतारिए।।


राष्ट्र देव राष्ट्र बंधु राष्ट्र सत्य मित्र है

सच कहें तो राष्ट्र जन्मभूमि का चरित्र है

राष्ट्र के लिए सभी निजी हितों को वारिए।।


मातु पर पड़े कोई कुदृष्टि फोड़ दीजिए

हाथ शत्रु के बढ़े तुरंत तोड़ दीजिए

भारती के पांव शत्रु रक्त से पखारिए।।


भरत के वंशजों को ये श्रृगाल क्या डराएंगे

वे हुआ हुआ करेंगे और भाग जायेंगे

वज्र अंग अग्निवीर नाम तो पुकारिए।।


दीन हीन देश के कभी किसी से मत डरें

राष्ट्र के लिए जिएं राष्ट्र के लिए मरें

सब गले मिलेंगे आप बांह तो पसारिए।।


शत्रु देश सुन लें भूल भूल से भी मत करें

शूल शूल है प्रहार फूल से भी मत करें

दुष्चरित्र हैं तो अब चरित्र को सुधारिए।।


राम जो हुए कुपित कोई बचा न पाएगा

चीन रूस क्या यहां अमेरिका न आएगा

ख़ुदा से खैर मांगिए न सत्य को नकारिए।।

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है