फिर बीती बातों की बातें।

फिर गुज़रे लम्हों की बातें।।

फिर झूठी कसमों पर चर्चा

फिर झूठे वादों की बातें।।

दिन दिन भर बतियाते रहना

उन भीगी रातों की बातें।।

किसके शानों पर हम रोयें 

करके उन शानों की बातें।।

ख़त्म कहाँ होती है यारों

साहिल से लहरों की बातें।।

गांव गली में फैल गयी है

आंगन ओसारों की बातें।।

खैर कहाँ तक छुप सकती थीं

उल्फ़त के मारों की बातें।।

सुरेश साहनी ,कानपुर

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