व्यंग लेख

 यह कौन बतायेगा कि मॉरीशस में आयोजित विश्व हिंदी सम्मेलन में भाग लेने के लिए जाने वाली सूची में मेरा नाम था या नहीं।और नहीं था तो रहने के लिए क्या अर्हताएं थीं।अब जबकि हमारे मित्रगण आने जाने का किराया भी देने को तैयार हो गये।तो पता चला कि सूची तो सिंह साहब बना चुके हैं।चलो विदेश नहीं गए उसका गम नहीं।सो तो हम किसी दिन नेपाल चले जायेंगे।लेकिन अब हमारे मित्र लोग कह रहे हैं कि हम तुमको अब बड़ा साहित्यकार नहीं मानेंगे। अच्छा हुआ हम महिला नहीं हैं ,नहीं तो मैत्रेयी जी के अनुसार सूची से स्वतः बाहर हो जाते। एक और बात हम अभी तक किसी लेखक ग्रुप से नहीं जुड़ पाए हैं।ग्रुप जैसे- प्रगतिशील, वामपंथी,दक्षिणपंथी,समाजवादी,या दलित साहित्य आदि आदि।लोग बताते हैं इसलिए भी आप सहित्यमारों की सूची से बाहर हैं।आपको कोई एक पाला तो पकड़ना ही पड़ेगा।और अगर शॉर्टकट सफलता चाहिए तो किसी सरकार समर्थक पत्रकार से टॉमीगिरी का प्रशिक्षण ले लीजिए। 

   खैर! अपनी आर्थिक स्थिति देखकर एक बार मन तो बहकता है लेकिन ज़मीर है कि मानता नहीं।

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