इधर हम मुस्कुराते जा रहे है।
उधर वो खार खाते जा रहे है।।
इधर हम खुश हैं गिरती बिजलियों से
वो अपना दिल जलाते जा रहे हैं।।
हमारे चाँद के जलवों से जल कर
वो ख़ुद को ही बुझाते जा रहे हैं।।
कहाँ जाने हैं वो दीने-मुहब्बत
फ़क़त तोहमत लगाते जा रहे हैं।।
हमें हरजाई कहने वाले सोचें
वो ख़ुद को क्या बनाते जा रहे हैं।।
हमें खुश देखकर पहलू में इनके
जहन्नम में वो जाते जा रहे हैं।।
न जाने क्यों दुखी हैं ग़ैर अपने
जो हम हँसते हँसाते जा रहे हैं।।
सुरेश साहनी, कानपुर
9451545132
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