एक कलम से इतना सारा लिखते हो।
स्याही को कैसे उजियारा लिखते हो।।
सच का दावा आख़िर कितना जायज है
क्या अंधियारे को अँधियारा लिखते हो।।
कल तुमने उड़ते जुगनू का खून किया
आज उसे ही चाँद सितारा लिखते हो।।
औरों पर तो खूब उठाते हो अँगुली
क्या अपनी भी ओर इशारा लिखते हो।।
मत चिनार को सुलगाने की बात करो
जमी झील क्यों दबा शरारा लिखते हो।।
जंतर मंतर की खबरें क्यों दबती हैं
कब अंगारे को अंगारा लिखते हो।।
अपनी बारी में क्यों मुंह सिल जाता है
औरों को तो खूब नकारा लिखते हो।।
तुमसे सच की कैसे हम उम्मीद करें
तुम तो गाँधी को हत्यारा लिखते हो।।
#सुरेशसाहनी
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