क्यों कहें हम प्यार तुमसे था कभी हम क्यों कहें।
क्यों गहें उस राह जब चलना नहीं कर क्यों गहें।।
वो लड़कपन की कहीं बातें गयीं
चाँद तारों से भरी रातें गयीं
खेल गुड्डे और गुड़ियों के गए
बेवजह खुशियों की बारातें गयीं
क्यों बहें जब रसभरी घड़ियाँ बहीं हम क्यों बहें।।
उस समय रिश्ते तो थे बेनाम थे
सिर्फ पढ़ना खेलना ही काम थे
निष्कपट थी तब हमारी ज़िन्दगी
और तब सम्बन्ध भी निष्काम थे
जब कि विधिसम्मत नहीं इस बन्ध में हम क्यों रहें।।
और फिर अनुबन्ध कैसे तोड़ दें
ईश्वरीय सम्बन्ध कैसे तोड़ दें
सात फेरे अग्नि साक्षी मानकर
हम बंधे जिस बन्ध कैसे तोड़ दें
क्यों ढहे अपने ही हाथों जिंदगी, हम क्यों ढहें।।
प्रेम पाना है तो खोना सीख लें
दूसरों हित होम होना सीख लें
मार्ग अपयश का पतन का त्याग कर
सिर्फ मन का मैल धोना सीख लें
क्यों सहें आलोचनाएं हर किसी की क्यों सहें।।
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