अब तक तो आज़ाद नहीं पर

आज़ादी है सोच रहा हूँ


बेशक़ बंडी फटी हुई है

चाहूँ तो कल ही ले आऊं

किन्तु पाँच दिन बिना चाय के

बच्चों को कैसे बहलाऊँ


और अभी वेतन आने में

पूरे पंद्रह दिन बाकी हैं

कितने काम ज़रूरी हैं पर

कितने ही लेकिन बाकी हैं


ऐसे में ख़ुद पर हर इक व्यय

बरबादी है सोच रहा हूँ.....


सोच रहा था इस वेतन में

उसको साड़ी दिलवाऊंगा

सोच रहा था अबकी उसको

वृन्दावन भी ले आऊंगा


पर बच्चों की भी ज़रूरते

बस्ते कॉपी और किताबेँ

दोनो की स्कूल ड्रेस भी

अप्पर लोवर और जुराबें


प्रभु ने मुझ पर ज़िम्मेदारी

क्यों लादी है सोच रहा हूँ.......


महँगाई बढ़ती है जैसे

दिन दिन सुरसा मुंह फैलाये

आवश्यकताएं घेरें घर मे 

आगे पीछे दाएं बाएं


बाबू जी का चश्मा देखें

या अम्मा की धोती लाएं

सोच रहें हैं बजट बनें तो

बाइक की सर्विस करवाएं


किसे उलाहूँ कौन समय का

अपराधी है सोच रहा हूँ.......


सुरेश साहनी कानपुर

9451545132

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