तेरे सुबहो-शाम मेरे नहीं।

तो मेरे कलाम मेरे नहीं ।।

मेरी ज़िंदगी तेरे नाम है

मेरे दिन तमाम मेरे नहीं।।

मुझे जन्नतों की हिरस नहीं

कोई नेक काम मेरे नहीं।।

जो मेरे क़याम में साथ हैं

ये भी इंज़माम मेरे नहीं।।

मुझे सच मे ख़ुद की तलाश है

मेंरे  नाम गाम मेरे नहीं।।

सुरेश साहनी, कानपुर

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