तुमने मेरा बचपन छीना
तुमने तरुणाई छीनी है।
तुमने सखियों से दूर किया
तुमने तनहाई छीनी है
सब खेल खिलौने घर आँगन
झूलों का सावन लूट लिया
जो दर्पण देख लजाती थी
तुमने वह दर्पण लूट लिया
मैं बनी बावरी फिरती हूँ
तुमने चतुराई छीनी है।।
तुमने मेरा बचपन छीना......
मन ने तुमको स्वीकार किया
तुमने तन पर अधिकार किया
जिस मन से तुम्हे समर्पित हूँ
क्या तुमने अंगीकार किया
पूछो अपने दिल से किसने
मेरी अंगड़ाई छीनी है।।
तुमने मेरा बचपन छीना......
सुरेशसाहनी, कानपुर
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