रंग इतना भी मौसमी मत दे।
गिरगिटों जैसी ज़िन्दगी मत दे।।
दर्द भी हैं तेरे कुबूल मुझे
उसकी आँखों को ये नमी मत दे।।
दिन की हस्ती सियाह हो जाये
इस क़दर रात शबनमी मत दे।।
मेरा साया न छोड़ दे मुझको
इतनी ज़्यादा भी रोशनी मत दे।।
सुनके ही दम मेरा निकल जाये
इस तरह भी कोई खुशी मत दे।।
मेरा क़िरदार कर न कर रोशन
उसकी राहों में तीरगी मत दे।।
मुझको ख़ुद पर हँसी न आ जाये
ग़मज़दा हूँ मुझे हँसी मत दे।।
धूप में भी तो मत तपा मुझको
ठीक है रात चांदनी मत दे।।
माना तन्हा सफ़र नहीं बेहतर
हमसफ़र भी तो अजनबी मत दे।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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