हमें आदमी नहीं
ज़मीन की ज़रूरत है
तुम्हें मालूम है
नौ आदिवासी ज़मीन से कीमती नहीं थे
पहली बात तो हर आदमी आदमी नहीं होता
उनके हिन्दू होने पर भी सवाल है
और सवाल सवाल ही रहता है
दरअसल तुम जिन्हें सवाल कहते हो
वे तुम्हारे द्रोह के स्वर हैं
किन्तु सवाल वे हैं जो नाज़िल होते हैं
दरअसल वे सवाल नहीं हुक्म हैं
जैसे तुम आदिवासी हो
नागरिकता तुम्हारे अस्तित्व पर
भद्दा सवाल है।
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